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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. निर्देशन कार्यक्रम में मुख्य अध्यापक के कार्यों या भूमिका पर प्रकाश डालिए।
2. स्कूल के निर्देशन कार्यक्रम में कक्षा अध्यापक की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
3. स्कूल निर्देशन कार्यक्रम में मनोवैज्ञानिक तथा स्कूल परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
4. एक आदर्श निर्देशन संगठन की क्या विशेषताएँ हैं? विस्तृत उल्लेख कीजिए।

अथवा
एक सुनियोजित निर्देशन कार्यक्रम की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर -

निर्देशन कार्यक्रम में मुख्य अध्यापक की भूमिका अथवा कार्य

किसी भी स्कूल में मुख्याध्यापक का स्थान सबसे महत्तवपूर्ण होता है। वह पूरी संस्था का प्रधान होता है। स्कूल की समस्त कार्यप्रणाली मुख्याध्यापक की योग्यताओं और प्रशासकीय क्षमता पर निर्भर करती है। निर्देशन को शिक्षा का अनिवार्य भाग माना गया है, अतः मुख्याध्यापक पर निर्देशन- कार्यक्रम का दायित्व भी सौंपा जाना चाहिए। मुख्याध्यापक को निर्देशन सेवा की व्यवस्था भी संभालनी आवश्यक है। इस कार्य में वह किसी अन्य अध्यापक की सहायता भी ले सकता है परन्तु वह अपने नेतृत्व के अधिकार को किसी को नहीं सौंप सकता। इस प्रकार मुख्याध्यापक के कुछ विशेष दायित्व हैं -

(1) मुख्याध्यापक पर निर्देशन कार्यक्रम को नेतृत्व प्रदान करने का उत्तरदायित्व है। अतः उसकी भूमिका बहुत महत्तवपूर्ण है।
(2) मुख्याध्यापक, संख्या में निर्देशन- कार्यक्रम के महत्त्व तथा विभिन्न समस्याओं को समझने में सहयोगी अध्यापकों की सहायता कर सकता है।
(3) निर्देशन प्रक्रिया के निरीक्षण में मुख्याध्यापक अपनी भूमिका निभा सकता है ताकि निर्देशन कार्यक्रम सफल हो सकें।
(4) मुख्याध्यापक निर्देशन कर्मचारियों में उनकी योग्यता तथा क्षमतानुसार कार्यों का वितरण करे तथा आवश्यकतानुसार उनकी नियुक्तियाँ करे।
(5) मुख्याध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह परामर्श सेवा के लिये भवन की व्यवस्था करें।
(6) मुख्याध्यापक को प्रतिदिन निर्देशन कार्यों के लिए समय निकालना चाहिए तभी यह कार्यक्रम सफल हो पायेगा।
(7) विद्यार्थियों के अभिभावकों तथा माता-पिता को निर्देशन कार्यक्रमों से परिचित करवाना भी मुख्याध्यापक का दायित्व है।
(8) मुख्याध्यापक का उत्तरदायित्व है कि वह निर्देशन कार्यक्रम के लिये पर्याप्त धन की व्यवस्था करें।
(9) निर्देशन कार्यक्रम के प्रभावों या परिणामों का मूल्यांकन मुख्याध्यापक अन्य अध्यापकों की सहायता से करवा सकता है।
(10) मुख्याध्यापक को स्कूल में एक निर्देशन समिति जिसका प्रधान वह स्वयं बने। इस समिति के सभी सदस्य मिलकर निर्देशन क्रियाएँ तय करेंगे। निर्देशन समिति के सदस्यों का चयन सावधानीपूर्वक किया जाये।
(11) मुख्याध्यापक को चाहिए कि वह निर्देशन कार्यक्रम के लिये हर प्रकार की सुविधाओं को उपलब्ध कराये। इन सुविधाओं में पर्याप्त फर्नीचर, निर्देशन कार्यालय, सामग्री खरीदने के लिये पर्याप्त धन आदि सम्मिलित है।
(12) मुख्याध्यापक का यह नैतिक कर्त्तव्य है कि वह स्कूल तथा समाज के सामने निर्देशन सेवाओं की व्याख्या करे।
(13) मुख्याध्यापक को समय-समय पर निर्देशन- सेवाओं का पुनर्मूल्यांकन एवं पुनर्निधारण करना चाहिए। इस कार्य को वह निर्देशन समिति के सुपुर्द कर सकता है। यह समिति कार्यक्रम में सुधार के लिये सिफारिशें करे। इन सिफारिशों को लागू करने का उत्तरदायित्व मुख्याध्यापक पर होना चाहिए।
(14) मुख्याध्यापक निर्देशन सम्बन्धी साहित्य की व्यवस्था करे तथा इसका वितरण करवाये।
(15) मुख्याध्यापक विद्यार्थियों तथा उनके अभिभावकों से मिलकर कार्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन एवं सुधार कर सकता है।
(16) मुख्याध्यापक का दायित्व है कि अध्यापकों को निर्देशन कार्य सौंपने से पहले उनका शिक्षण-कार्यभार देख ले, जिन अध्यापकों को निर्देशन का कार्य दिया जाता है, उनका शिक्षण कार्यभार कम कर देना चाहिए।
(17) अध्यापकों को निर्देशन कार्य का प्रशिक्षण देने के लिए मुख्याध्यापक सेवाकालीन शिक्षा का आयोजन करे। इस कार्य हेतु योग्य तथा विशेषज्ञ व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाना चाहिए। विद्यालय में भी अध्यापकों के लिए अंशकालीन पाठ्यक्रम शुरू किये जा सकते है।

निर्देशन कार्यक्रम में कक्षा अध्यापक के कार्य अथवा भूमिका -

(1) विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का विकास - कक्षा अध्यापक सभी विद्यार्थियों से व्यक्तिगत रूप से परिचित होते हैं। अतः अध्यापक विद्यार्थियों के बारे में प्रत्येक सूचनाएँ एकत्रित कर सकते हैं। वे विद्यार्थियों के पारिवारिक वतावरण, सहपाठियों के प्रति उनके व्यवहारों आदि के बारे में सूचनाएँ एकत्रित कर सकते हैं। अध्यापक विद्यार्थियों की कठिनाइयों से भी परिचित रहता है। ये कठिनाइयाँ विद्यार्थियों में हीनभावना उत्पन्न कर देती हैं जिससे विद्यार्थियों में अस्वस्थ दृष्टिकोण विकसित होने लगते हैं, जो उनके अध्ययन तथा व्यवहारों को प्रभावित करते हैं। इससे कुसमायोजन की संभावनाएँ बढ़ जायेंगी। इन सभी कठिनाइयों से विद्यार्थी के व्यक्तित्व पर दुष्पभाव पड़ सकता है।

(2) व्यावसायिक सूचनाएँ प्रदान कराना - जब कोई अध्यापक निर्देशन सेवा का उतरदायित्व स्वीकार करता है तो उसके अवलोकन का क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। वह विद्यार्थी पर दृष्टि रखता है कि वह किन कार्यक्रमों में भाग ले रहा है, उसकी रुचियाँ किस प्रकार की हैं, उसमें किस व्यवसाय की योग्यता है। अध्यापक के लिए आवश्यक है कि वह विद्यार्थियों को विभिन्न निपुणता, शैक्षिक योग्यता तथा भविष्य की सफलताओं आदि के बारे में बतायें। अध्यापक विद्यार्थियों के लिये व्यावसायिक यात्रा की व्यवस्था भी कर सकते हैं।

(3) विद्यार्थियों को जानना - निर्देशन कार्यक्रम में 'व्यक्ति' को ही निर्देशन का केन्द्रीय बिन्दु मानकर तथा समस्या को गौण स्थान देते हैं। अतः विद्यार्थी को समझना आवश्यक है। विद्यार्थियों को समझने हेतु अध्यापक के लिये निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं।

(i) अध्यापक विद्यार्थियों की विभिन्न योग्यताओं से परिचित हों। सभी विद्यार्थी एक समान नहीं होते। उनमें कुछ विभिन्नताएँ होती हैं। अतः प्रत्येक विद्यार्थी को एक स्वतंत्र इकाई समझना   चाहिए।
(ii) अध्यापक को यह सोचकर विद्यार्थियों से व्यवहार करना चाहिए कि उनके प्रत्येक व्यवहार का कोई-न-कोई कारण होता है, इसलिए विद्यार्थी यह व्यवहार करता है।
(iii) अध्यापक विद्यार्थियों को पूरे दिल से स्वीकार करें। विद्यार्थी के प्रति अध्यापक को निराशावादी दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए।
(iv) विद्यार्थियों की योग्यताएँ और विशेषताओं को जानने के लिए अध्यापक को मनोवैज्ञानिक होना आवश्यक है।

(4) परामर्श - परामर्श प्रदान करने के लिए एक अध्यापक को निम्नलिखित बातों को ध्यान देना होगा

(i) अध्यापक विद्यार्थियों की रुचियों, अभिरुचियों, आवश्यकताओं, उपलब्धियों आदि पर अध्ययन करे।
(ii) अध्यापक उन विद्यार्थियों के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क करे जिनको विषय के चयन या किसी व्यवसाय के चयन में समस्या आ रही हो।
(iii) वह विद्यार्थियों की भावात्मक समस्याओं को समझे तथा उनका समाधान करे।

इनके अतिरिक्त भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित 'शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन की पुस्तिका में भी निर्देशन कार्यक्रम में अध्यापक के उत्तरदायित्वों का उल्लेख किया गया है।

1. सूचनाएँ एकत्रित करना - एक स्कूल अध्यापक निर्देशन कार्यक्रम में विद्यार्थियों से सम्बन्धित आवश्यक सूचनाओं को एकत्रित कर सकता है।
2. रुचियों और अभिरुचियों का विकास - स्कूल के निर्देशन कार्यक्रम में अध्यापक विद्यार्थियों की रुचियों और अभिरुचियों को जानकर उन्हें सही दिशा देने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
3. नैतिक विकास में सहायता - अध्यापक विद्यार्थियों के नैतिक विकास में सहायता कर सकता है।

इस प्रकार एक अध्यापक की निर्देशन कार्यक्रम में निम्नलिखित भूमिका हो सकती है-

(i) विद्यार्थियों से सम्बन्धित जानकारी एकत्रित करनी और उसका संचित अभिलेख तैयार करना।
(ii) समस्याग्रस्त बालकों की केस हिस्ट्री तैयार करना।
(iii) विद्यार्थियों की समायोजन सम्बन्धी समस्याओं को ज्ञात करना।
(iv) विद्यार्थियों के माता-पिता तथा अभिभावकों और मुख्याध्यापक को विद्यार्थी से सम्बन्धित रिपोर्ट भेजना।
(v) विद्यार्थियों को व्यक्तिगत परामर्श प्रदान करना।
(vi) कक्षा में आदर्श वातावरण तैयार करना।
(vii) विद्यार्थियों का विभिन्न परिस्थितियों में अवलोकन करना।
(viii) अभिभावक अध्यापक गोष्ठी में सक्रिय भाग लेना।
(ix) विद्यार्थियों को उनके अधिकतम विकास के विभिन्न अवसर प्रदान करना।
(x) विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु विभिन्न विशेषज्ञों की सहायता लेना।
(xi) विद्यार्थियों को उनकी उन्नति के मूल्यांकन में सहायता करना।
(xii) विद्यार्थियों को शैक्षिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में समायोजन में सहायता प्रदान करना।
(xiii) अन्य निर्देशन कार्यकर्त्ताओं को अपना सहायोग देना।

स्कूल निर्देशन कार्यक्रम में मनोवैज्ञानिक की भूमिका अथवा कार्य

स्कूल निर्देशन कार्यक्रम में एक मनोवैज्ञानिक निम्नलिखित प्रकार से अपना योगदान कर सकता है

(i) मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा विद्यार्थी के व्यक्तित्व का विश्लेषण करने में मनोवैज्ञानिक अपना योगदान दे सकता है। एक मनोवैज्ञानिक विद्यार्थी की रुचियों, अभिरुचियों, योग्यताओं,        संभावनाओं आदि के बारे में सूचनाएँ वैज्ञानिक ढंग से एकत्रित कर सकता है।
(ii) एक मनोवैज्ञानिक व्यक्ति की संवेगात्मक तथा अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याओं को हल करने तथा अधिकतम समायोजन करने में सहायता प्रदान कर सकता है।
(iii) विद्यार्थी की व्यक्तित्व की समस्याओं के सम्बन्ध में खोज कार्य में मनोवैज्ञानिक का विशेष तथा तकनीकी योगदान हो सकता है।
(iv) मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के परिणामों की व्याख्या भी मनोवैज्ञानिक ही कर सकता है। ऐसी व्याख्या एक मनोवैज्ञानिक द्वारा ही की जानी चाहिए।
(v) प्रतिभाशाली और हीन भावना से ग्रस्त विद्यार्थियों के उपचार में भी मनोवैज्ञानिक ऐसे विद्यार्थियों की समस्याओं को समझकर उन्हें दूर करने में सहायता करता है।

विद्यालय, परामर्शदाता की भूमिका अथवा कार्य

एक स्कूल परामर्शदाता के विभिन्न कार्य निम्न प्रकार हैं -

(1) विद्यार्थियों का मूल्यांकन - एक निर्देशन कार्यक्रम की आवश्यकता परामर्शदाता के लिये सूचना-स्रोत और समान है। ताकि विद्यार्थियों की निर्देशन- आवश्यकताओं को पहचाना जा सके। एक परामर्शदाता विद्यार्थी के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएँ विद्यार्थियों के साथ साक्षात्कारों, उनके अभिभावकों के साथ साक्षात्कारों तथा विद्यार्थियों से जुड़े हुए अध्यापकों के साथ साक्षात्कारों तथा स्कूल के अन्य व्यक्तियों से एकत्रित करता है। परामर्शदाता मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की व्यवस्था करता है, शैक्षिक रिकार्ड तथा अन्य रिकार्ड को एकत्रित करता है। परामर्श-साक्षात्कार में परामर्शदाता द्वारा सभी सूचनाएँ विद्यार्थियों को उपलब्ध कराई जाती हैं तथा इनकी व्याख्या बतायी जाती है। इन सूचनाओं की व्याख्या को विद्यार्थियों के माता-पिता और उनके अध्यापकों को भी बताई जाती हैं।

(2) विद्यार्थियों का अभिविन्यास - नये विद्यार्थियों को निर्देशन कार्यक्रम से परिचित कराया जाता है जिससे वे नये वातावरण में समायोजित हो सकें। परामर्शदाता इस कार्य को व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कर सकता है। इसके लिये सभाओं और बहसों का आयोजन भी किया जा सकता है।

(3) शैक्षिक और व्यावसायिक सूचना - सेवा परामर्शदाता सभी सूचनाओं में समन्वय के लिये उत्तरदायी होता है। वह विद्यार्थियों को संभावनाओं और भावी अवसरों का पता लगाने में सहायता करता है तथा इन सूचनाओं के प्रयोग में भी सहायता करता है। परामर्शदाता स्कूल में कैरियर अध्यापक को सहायता प्रदान कर सकता है। वह शैक्षिक और व्यावसायिक सूचनाओं को एकत्रित करने के लिए विभिन्न विधियों को अपना सकता है, उनका वर्गीकरण करता है तथा उसे पूर्ण रखता है। एक परामर्शदाता के पास रोजगार से सम्बन्धित नवीन सूचनाएँ होती हैं तथा वह विभिन्न अधिकारियों और नियुक्तिकर्त्ताओं के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क रखता है। परामर्शदाता पर सूचनाओं के वितरण का उत्तरदायित्व भी होता है। यह कार्य वह शैक्षिक भ्रमणों, अतिथि भाषणों, कैरियर कान्फ्रेंसिस और कैरियर अध्ययन परियोजना आदि द्वारा करता है।

(4) परामर्श साक्षात्कार - एक परामर्शदाता विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें परामर्श प्रदान करने के लिये उत्तरदायी होता है। परामर्श साक्षात्कार के माध्यम से वह विद्यार्थियों के अनुभवों का मूल्यांकन करता है और इन अनुभवों को उनके वास्तविक व्यवहारों से सम्बद्ध करके उनकी सहायता करता है। परामर्शदाता विद्यार्थियों में समस्या समाधान के कौशलों और स्वतंत्र चिंतन, योजना, निर्णय सम्बन्धी योग्यता का विकास करने में सहायता करता है।

(5) नियुक्ति का दायित्व बाहरी संस्थाओं तथा स्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों के मध्य एक सेतु का कार्य करने का उत्तरदायित्व भी परामर्शदाता पर होता है ताकि विद्यार्थियों को रोजगार से सम्बन्धित विभिन्न सूचनाएँ प्राप्त हो सकें।

(6) शोध और मूल्यांकन - स्कूलों में निर्देशन कार्यक्रम द्वारा क्या वास्तव में वांछनीय उद्देश्य प्राप्त कर लिये गये हैं तथा क्या विद्यार्थियों की आवश्यकताएँ पूरी हो गई हैं, इसे जानने के लिये परामर्शदाता शोध करके एक योजना तैयार करता है। इसके अन्तर्गत परामर्शदाता शोध और मूल्यांकन के कई कार्यक्रम करता है।

एक आदर्श निर्देशन संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं -

(1) निरन्तरता - प्रत्येक निर्देषन सेवा का निरन्तर होना आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में समस्याओं की निरन्तरता बनी रहती है। इसलिये इन सेवाओं की निरन्तरता भी आवश्यक है।
(2) सहयोग - एक अच्छे निर्देशन सेवा संगठन में सभी अभिभावकों का सहयोग लिया जाये। स्कूल स्टाफ के प्रत्येक सदस्य का सहयोग प्राप्त करके निर्देशन- सेवा को आदर्श बनाया जा सकता है।
(3) उचित जानकारी तथा रिकार्ड - निर्देशन सेवाओं की सफलता विद्यार्थियों के बारे में उचित जानकारी और उनके रिकार्ड पर भी निर्भर है। निर्देशन सेवा का प्रयोग शैक्षिक तथा व्यावसायिक आवश्यकताओं तथा उनसे सम्बन्धित जानकारी अन्य विधियों से प्राप्त करने तथा उसे रिकार्ड करने में किया जाना चाहिए।
(4) निर्देशन सेवा सभी के लिए - एक अच्छे निर्देशन की सेवा सभी के लिए होती है। लोकतंत्रीय देश में प्रत्येक छात्र निर्देशन प्राप्त करने का अधिकारी होता है। इसलिए स्कूल में सभी विद्यार्थियों को निर्देशन प्रदान करना चाहिए।
(5) बाल केन्द्रित - निर्देशन कार्यक्रम को बाल केन्द्रित होना चाहिए अर्थात् निर्देशन सेवाओं का संगठन स्कूल के बच्चों को आवश्यकताओं, रुचियों तथा उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
(6) विशेषज्ञता - निर्देशन सेवाओं के संगठन में विशेषज्ञों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। निर्देशन सेवा में विशेषज्ञों का होना आवश्यक है। जैसे परामर्शदाता, मनोवैज्ञानिक, मनोविश्लेषक, स्कूल के सामाजिक कार्यकर्त्ता, डाक्टर आदि।
(7) गोपनीयता - निर्देशन सेवा में निर्देशन हेतु एकत्रित सूचनाओं को गोपनीय रखना आवश्यक है ताकि विद्यार्थियों का विश्वास निर्देशन अधिकारियों पर बना रहे। विद्यार्थियों को विश्वास में लेने पर ही उनसे सूचनाएँ एकत्र की जा सकेंगी। गुप्त सूचनाओं की जानकारी केवल परामर्शदाता को ही होनी चाहिए।
(8) सामंजस्य - निर्देशन सेवा द्वारा सभी सहयोगी एजेन्सियों के लिये निर्देशन हेतु आपसी सामंजस्य के अवसर प्रदान करना चाहिए।
(9) आर्थिक प्रबन्ध निर्देशन - सेवा को उच्च स्तर का बनाने के लिये आर्थिक प्रबन्धों का होना अनिवार्य है। इस कार्यक्रम को प्रारम्भ करने से पहले ही वित्तीय व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
(10) प्रार्थी को अन्तिम निर्णय का अवसर - एक अच्छे निर्देशन कार्यक्रम में प्रार्थी को ही अन्तिम निर्णय का अवसर दिया जाना चाहिए। उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।
(11) परामर्श प्रक्रिया, मूल्यांकन परीक्षण तथा संचित अभिलेख पत्र रखने का उचित प्रबन्ध -  अच्छे निर्देशन कार्यक्रम के संगठन में परामर्श प्रक्रिया, मूल्यांकन, परीक्षण तथा संचित अभिलेख पत्र आदि रखने की उचित व्यवस्था होना आवश्यक है। वरना निर्देशन प्रक्रिया सफल होना संदिग्ध हो जाता है।
(12) सरलता - निर्देशन कार्यक्रम जितना सरल होगा उतना ही अधिक सफल होगा। ऐसे सरल कार्यक्रमों में सभी व्यक्ति रुचि लेंगे।
(13) निर्देशन कार्यकर्त्ताओं को योग्यता बढ़ाने के अवसर - निर्देशन कार्यकर्त्ताओं तथा इन कार्यक्रम में कार्यरत अन्य व्यक्तियों को अपनी योग्यताओं में वृद्धि करने के लिए पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए। क्योंकि निर्देशन के क्षेत्र में प्रतिवर्ष नई विधियाँ आती हैं तथा पुरानी विधियों में परिवर्तन तथा सुधार होते रहते हैं। प्रतिवर्ष नये-नये परीक्षण बनते रहते हैं। इन सभी परिवर्तनों से निर्देशन- कार्यकर्त्ता को परिचित होना चाहिए।
(14) निर्देशन के लिये पर्याप्त समय - निर्देशन सेवा के सफल निर्देशन हेतु निर्देशन कार्यकर्त्ताओं को पर्याप्त समय मिलना चाहिए, परामर्श के लिये समय। स्कूल की समय-सारिणी में निर्देशन के लिये पर्याप्त समय होना चाहिए।
(15) विभिन्न विधियों का प्रयोग - निर्देशन हेतु सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न विधियों का प्रयोग करना आवश्यक है। इससे कार्यक्रम की विश्वसनीयता में वृद्धि होती है।
(16) निर्देशन कार्यकर्त्ताओं का चयन - एक अच्छे निर्देशन कार्यक्रम के लिये निर्देशन कार्यकर्त्ताओं का चयन उनकी योग्यताओं, प्रशिक्षण तथा अनुभवों के आधार पर करना चाहिए। निर्देशन सम्बन्धी कार्य अकेले अध्यापक द्वारा नहीं हो सकते हैं। अतः निर्देशन में विशेष योग्यता प्राप्त व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।
(17) समाधान करना - निर्देशन सेवा समस्याओं के कारणों की खोज करने के लिये संगठित किया जाता है। इन समस्याओं के समाधान की तैयारी की जानी चाहिए।
(18) योग्यतानुसार उत्तरदायित्व एक अच्छे निर्देशन संगठन सभी व्यक्तियों को उनकी योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुसार ही उत्तरदायित्व सौंपे जाने चाहिए। अन्यथा सारे निर्देशन कार्यक्रम असफल हो जायेंगे।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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